Wednesday 4 July 2012

जूतों के लिए तरस रहे दो भारतीय एथलीट


लंदन ओलंपिक के लिए भारतीय खिलाडि़यों की सोमवार को औपचारिक विदाई हो गई है। लेकिन सरकार का यह दावा कि इस बार ओलंपिक की तैयारियों के नाम पर काफी खर्च किया गया है बावजूद इसके हकीकत यह है कि दो गरीब खिलाडि़यों के पास इतने पैसे नहीं है कि वे इस महाकुंभ में भाग लेने के लिए उपयोगी जूते खरीद सकें। भारतीय सेना में बतौर जवान कार्यरत बसंत बहादुर राना और इरफान के टी को ओलंपिक में लंबी दूरी की पैदल चाल में भाग लेना है लेकिन इनके पास ओलंपिक में खेलने लायक जूते नहीं हैं। लगभग 15 हजार प्रति माह पाने वाले दोनों जवान पैदल चाल के लिए स्पेशल जूते खरीदने के वास्ते कई महीनों से अपने खर्चो में कटौती कर पैसे जुटाने की कोशिश करते रहे हैं। दोनों एथलीट अपने-अपने घर के एकमात्र कमाऊ बेटे हैं। फिर भी उन्होंने पिछले साल अपने जूतों पर हजारों रुपये खर्च किए। इन दोनों प्रतिभाशाली एथलीटों को भारतीय एथलेटिक्स महासंघ, भारतीय खेल प्राधिकरण [साइ] या खेल मंत्रालय से कोई आर्थिक मदद भी नहीं मिली है। राना का कहना है कि सरकार ने प्रयोग किए हुए जूते दिए जिसे अब प्रयोग में नहीं लाया जा सकता। दोनों एथलीटों ने बताया कि उन्हें और कोई उपकरण नहीं चाहिए लेकिन एक अदद अच्छे जूते से शानदार परिणाम जरूर लाया जा सकता है। लंदन ओलंपिक शुरू होने में एक महीने से भी कम 23 दिन रह गए हैं।

3/8 गोरखा राइफल्स के हवलदार राना ने बताया कि पिछले 18 महीनों में वह 40 हजार रुपये खर्च कर चुके हैं। एक जोड़ी जूते के दाम छह हजार रुपये तक बढ़ चुके हैं। उन्होंने बताया कि अपने पैतृक देश नेपाल में गरीबी दूर करने के लिए सेना ज्वाइन की थी। लेकिन जूते पर काफी पैसा खर्च करने के कारण राना अपने परिवार के लिए कुछ भी नहीं कर पाते। ओलंपिक में 50 किमी पैदल चाल के लिए क्वालीफाई करने वाले राना पहले भारतीय खिलाड़ी हैं। दूसरी ओर, मद्रास रेजीमेंटल सेंटर में बतौर सिपाही कार्यरत इरफान भी एक गरीब परिवार से आते हैं। उन्होंने बताया कि एक महीने में 1100 किमी चलता हूं। मुझे एक साल में कम से कम छह-सात जूते की दरकार है।

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