Wednesday, 18 July 2012

मिल्खा की एक ही ख्वाहिश, एथलेटिक्स में मिले सोना


पांच दशक पहले ओलंपिक में पदक से चूक जाने की टीस धावक मिल्खा सिंह को आज भी सालती है। रोम ओलंपिक [1960] में मिल्खा सेकेंड के चंद हिस्से से पदक जीतने से रह गए थे। अब वह किसी भारतीय को ओलंपिक में एथलेटिक्स का स्वर्ण जीतते हुए देखना चाहते हैं। उन्होंने कहा, 'दुनिया छोड़ने से पहले मैं किसी भारतीय एथलीट को ओलंपिक में स्वर्ण जीतते देखना चाहता हूं। वह इस देश के लिए और मेरे लिए पदक जीते, जिसे जीतने से मैं चूक गया था।' उड़न सिख के नाम से मशहूर 82 वर्षीय मिल्खा ने कहा, 'मैं ज्यादा से ज्यादा दो-तीन साल और जिंदा रहूंगा। कुछ दिनों पहले मेरे प्रिय मित्र दारा सिंह भी इस दुनिया को छोड़कर चले गए। मैं कब तक इस धरती पर रहूंगा अब यह ऊपरवाले की इच्छा पर निर्भर करता है लेकिन दुनिया छोड़कर जाने से पहले मैं एथलेटिक्स का पहला स्वर्ण देखना चाहता हूं।' रोम ओलंपिक की 400 मीटर की दौड़ में मिल्खा ने 45.60 सेकेंड का समय निकाला था। फोटो फिनिश में दक्षिण अफ्रीकी धावक मैलकम स्पैंस ने उन्हें पीछे छोड़ते हुए कांस्य पर कब्जा जमाया था। मिल्खा की झोली में ओलंपिक पदक तो नहीं आया, लेकिन उन्होंने अन्य कई अंतरराष्ट्रीय स्पद्र्धाओं में देश का नाम रोशन किया। उन्होंने 1958 और 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण जीता था। वह भारत के इकलौते पुरुष एथलीट हैं जिसने राष्ट्रमंडल खेलों में एथलेटिक्स की व्यक्तिगत स्पद्र्धा में स्वर्ण पदक जीता है। मिल्खा जानते हैं कि लंदन ओलंपिक में भारतीय एथलीटों के लिए पदक जीत पाना आसान नहीं होगा, लेकिन उन्हें कृष्णा पूनिया (चक्का फेंक) से थोड़ी उम्मीद है। उन्होंने कहा, 'लंदन में पदक जीतना किसी चमत्कार से कम नहीं होगा, लेकिन फिर भी मुझे लगता है कि कृष्णा कांस्य जीत सकती है।'

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